पृथ्वी का विद्युत विभव शून्य माना जाता है क्योंकि पृथ्वी एक
कुचालक है
चालक है
अर्द्धचालक है
परावैद्युत है
मान लीजिये एक आवेश रहित एवं सुचालक खोखला गोला है, जिसकी आंतरिक त्रिज्या $r$ एवं बाहरी त्रिज्या $2 r$ है । अब एक बिंदु आवेश $+Q$ को केंद्र से $r / 2$ दूरी पर गोले में रखा जाता है। और गोले की बाहरी सतह को भूसंकित (earthed) कर दिया जाता है। $P$ एक बाहरी बिन्दु है जो कि बिन्दु आवेश $+Q$ और केंद्र को जोड़नेवाली रेखा पर, बिन्दु आवेश $+Q$ से $2 r$ दूरी पर स्थित है, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है । एक परीक्षण आवेश $+q$, जो $P$ पर स्थित है, पर लगने वाले बल का मान होगा:
किसी चालक के पृष्ठ पर प्रति इकाई क्षेत्रफल आवेश $q$ है तो पृष्ठ के किसी बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता होगी
बिन्दु $P$ पर रखे बिन्दु आवेश के कारण उत्पन विद्युत क्षेत्र में एक खोखला गोलीय चालक चित्रानुसार रखा गया है। यदि ${V_A},{V_B},$ तथा ${V_C}$ क्रमश: बिन्दुओं $A,B$ व $C$ पर विभव हो तो
$10\, cm$ त्रिज्या वाले एक चालक गोले को $10\,\mu \,C$ आवेश दिया गया है। $20\, cm$ त्रिज्या वाले अनावेशित दूसरे गोले को इससे स्पर्श कराते हैं। कुछ समय पश्चात् यदि गोलों को अलग-अलग कर दिया जाये तब गोलों पर पृष्ठ आवेश घनत्वों का अनुपात होगा
यदि $NTP$ पर वायु की परावैद्युत क्षमता $3 \times {10^6}\,V/m$ है। तो $3\,m$ त्रिज्या वाले गोलीय चालक को कितना अधिकतम आवेश दिया जा सकता है