एक समान्तर प्लेट संधारित्र का प्लेट-क्षेत्रफल $A$ तथा प्लेट अन्तराल $d$ है। इसे $V_o$ विभव तक आवेशित किया जाता है। आवेशक बैटरी को हटाकर इसकी प्लेटों को दूर की ओर खींच कर इसका प्लेट अन्तराल पूर्व की तुलना में तीन गुना कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में किया गया कार्य है

  • A

    $\frac{{3{\varepsilon _0}AV_0^2}}{d}$

  • B

    $\frac{{{\varepsilon _0}AV_0^2}}{{2d}}$

  • C

    $\frac{{{\varepsilon _0}AV_0^2}}{{3d}}$

  • D

    $\frac{{{\varepsilon _0}AV_0^2}}{d}$

Similar Questions

दो सर्वसम संधारित्रों की धारिता $C$ है। इनमें से एक को ${V_1}$ विभव तक तथा दूसरे को ${V_2}$ विभव तक आवेशित किया गया है। संधारित्रों के ऋण सिरों को एक साथ जोड़ दिया जाता है। जब धन सिरों को भी जोड़ देंगे तब निकाय की ऊर्जा में हानि होगी

  • [IIT 2002]

$C = 10\,\mu \,F$ धारिता वाले संधारित्र को $40\,\mu \,C$ का आवेश दिया गया है। इसमें संचित ऊर्जा है (अर्ग में)

$C$ धारिता वाले एक समान्तर प्लेट धारित्र को $V$ विभव की बैटरी से समान्तर क्रम में जोड़ा गया है, अब धारित्र की प्लेटों के बीच की दूरी को एकाएक आधा कर दिया गया। यह मानकर कि दूरी घटाने पर संधारित्र में आवेश वही बना रहा, तो धारित्र को अन्तिम विभव $V$ पर दुबारा आवेशित करने के लिये बैटरी द्वारा दी गई ऊर्जा होगी

दो छोटे गोलाकार परस्पर $r$ दूरी पर रखे गये हैं। प्रत्येक पर  $q$ वैद्युत आवेश है। यदि एक गोलाकार को दूसरे गोलाकार के चारों ओर $r$ त्रिज्या के वृत्तीय पथ पर घुमाया जाता है तो सम्पन कार्य होगा

किसी पूर्णत: आवेशित संधारित्र की धारिता $‘C’$ है। इस संधारित्र का विसर्जन प्रतिरोधी तार की बनी किसी ऐसी छोटी कुण्डली से होकर किया जाता है, जो द्रव्यमान $‘m’$ तथा विशिष्ट ऊष्माधारिता $'s'$ के किसी ऊष्मारोधी गुटके में अंत: स्थापित है। यदि गुटके के ताप में वृद्धि ‘$\Delta T$’ है, तो संधारित्र के सिरों के बीच विभवान्तर है

  • [AIEEE 2005]