एक आवेशित संधारित्र की प्लेटों की बीच की दूरी बढ़ाने पर, संचित ऊर्जा
बढ़ती है
घटती है
अपरिवर्तित रहती है
शून्य हो जाती है
एक संधारित्र में संचित ऊर्जा का मान :
${R_1}$ एवं ${R_2}$ त्रिज्या के दो गोले, जिन पर आवेश क्रमश: ${Q_1}$ और ${Q_2}$ है, परस्पर संबंधित किये गये हैं, तब निकाय की ऊर्जा में
$16 \Omega$के तार को जोड़कर एक वर्णकार लुग बनाया गया है। $1 \Omega$ आन्तरिक प्रतिरोध की एक $9 \mathrm{~V}$ की बैटरी से इसकी एक भुजा से जोड़ा जाता है। यदि $4 \mu \mathrm{F}$ का एक संधारित्र इसके विकर्ण से जोड़ा गया हो तो संधारित्र में संचित $\frac{x}{2} \mu \mathrm{J}$ ऊर्जा होगी। जहाँ $\mathrm{x}=$. . . . . . . .
एक संधारित्र पर आवेश $Q$ विभव $V$ के साथ परिवर्तित होता है, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है, जहाँ $Q$, $X$-अक्ष के अनुदिश एवं $V$, $Y$-अक्ष के अनुदिश है। त्रिभुज $OAB$ प्रदर्शित करता है
चिकित्सा में उपयोगी डीफिब्रिलेटर (दिल की धड़कनों को सामान्य बनाने वाला उपकरण) में लगा $40$ $\mu F$ धारिता वाला संधारित्र $3000\,V$ तक आवेशित किया गया है। संधारित्र में संचित ऊर्जा $2\,ms$ अंतराल के स्पंदन (Pulse) द्वारा मरीज को दी जाती है। मरीज को दी गई शक्ति ......$kW$ होगी