दो पतले कम्बल उनकी कुल  मोटाई  के तुल्य एक कम्बल, की तुलना में अधिक गर्माहट देते हैं क्योंकि

  • A

    उनका पृष्ठीय क्षेत्रफल अधिक रहता

  • B

    दोनों पतले कम्बलों के मध्य वायु की पर्त बन जाती है और वह कुचालक रहती है

  • C

    उन दोनों में ऊन अधिक रहती है

  • D

    वे बाहर से अधिक ऊष्मा का शोषण करते हैं

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झील पर बनी बर्फ की होती है

उदाहरण चित्र में दर्शाए अनुसार लोहे की किसी छड़ $\left(L_{1}=0.1 m , A _{1}=0.02 m ^{2}, K_{1}=79\right.$ $W m ^{-1} K ^{-1}$ ) को किसी पीतल की छड़ $\left( L _{2}=0.1 m \right.$ $A_{2}=0.02 m ^{2}, K_{2}=109 W m ^{-1} K ^{-1}$ ) के साथ सिरे से सिरे को मिलाकर डाला गया है। लोहे की छड़ तथा पीतल की छड़ के स्वतंत्र सिरों को क्रमश: $373\, K$ तथा $273 \,K$ पर स्थापित किया गया है। $(i)$ दोनों छड़ों की संधि पर ताप, $(ii)$ संयुक्त छड़ की तुल्य ऊष्मा चालकता, तथा $(iii)$ संयुक्त छड़ में ऊष्मा प्रवाह की दर के लिए व्यंजक निकालिए तथा परिकलित कीजिए।

एक ही आकार के दो धात्विक घनों $A$ तथा $B$ को साथ जोड़कर रखा गया है। युग्म के अन्तिम सिरों को चित्र में दर्शाये गये तापमानों पर स्थिर रखा जाता है। यह विन्यास $(Arrangement)$ ऊष्मारोधित $(Thermally\,\, insulated)$ है। धातुओं $A$ तथा $B$ के ऊष्मा चालकता गुणांक क्रमश:  $300\;W/m^\circ C$ तथा $200\;W/m^\circ C$ है, तब स्थायी अवस्था में अन्तरापृष्ठ का तापमान $T $...... $^oC$ है

  • [IIT 1996]

निम्नलिखित में से किनकी ऊष्मा-चालकता में बायीं से दायीं ओर वृद्धि होती है

$R$ त्रिज्या के बेलनाकार छड़ के पदार्थ का ऊष्मा चालकता गुणांक ${K_1}$ है। इसे एक अन्य ${K_2}$ ऊष्मा चालकता गुणांक के भीतर बेलनाकार खोल में रखा गया है, इसकी आन्तरिक त्रिज्या  $R$ और बाह्य त्रिज्या $2R$ है। दोनों बेलनों के सिरों को (संयुक्त रूप से) विभिन्न तापों पर रखा गया है, उनके पृष्ठों से ऊष्मा हानि नहीं होती है और निकाय स्थायी अवस्था में है, तो निकाय की संयुक्त ऊष्मा चालकता होगी

  • [IIT 1988]