$2$ घंटे $30$ मिनट की अर्द्धायु वाला, नया-नया बना एक रेडियोसक्रिय स्त्रोत, अपने अनुमेय सुरक्षित स्तर के $64$ गुना विकिरण उत्सर्जित करता है। जिस न्यूनतम समय के बाद, इस स्त्रोत के साथ सुरक्षित कार्य करना संभव हो पाएगा, वह है $...........$ घंटे।
$14$
$18$
$15$
$75$
एक ताजा निर्मित रेडियोसक्रिय नमूने से जिसकी अर्द्धआयु $1$ घण्टा है, प्राप्त विकिरण उचित सुरक्षित सीमा से $128$ गुना तीव्र है। वह समय ......घण्टे होगा, जिसके पश्चात् इस नमूने का सुरक्षा से उपयोग किया जा सकता है,
पृथ्वी पर ${ }^{235} U$ मात्र $0.72$ प्रतिशत में उपलब्ध है एवं अन्य $(99.28 \%)$ को ${ }^{235} U$ माना जा सक्ता है। मान लीजिए कि पृथ्वी पर मौजूद सभी यूरनियम बहुत पहले एक सुपरनोवा विस्फोट से ${ }^{235} U / 238 U =2.0$ के अनुपात में उत्पन्न हुए। यह सुपरनोवा घटना कितने वर्ष पहले हुई होगी? ( ${ }^{235} U$ एवं ${ }^{238} U$ की अर्द्ध आयु क्रमशः $7.1 \times 10^8$ वर्ष एवं $4.5 \times 10^9$ वर्ष हैं।)
जीवित कार्बनयुक्त द्रव्य की सामान्य ऐक्टिवता, प्रति ग्राम कार्बन के लिए $15$ क्षय प्रति मिनट है। यह ऐक्टिवता, स्थायी समस्थानिक $_{6}^{14} C$ के साथ-साथ अल्प मात्रा में विद्यमान रेडियोऐक्टिव $_{6}^{12} C$ के कारण होती है। जीव की मृत्यु होने पर वायुमंडल के साथ इसकी अन्योन्य क्रिया ( जो उपरोक्त संतुलित ऐक्टिवता को बनाए रखती है ) समाप्त हो जाती है, तथा इसकी ऐक्टिवता कम होनी शुरू हो जाती है। $_{6}^{14} C$ की ज्ञात अर्धायु ( $5730$ वर्ष ) और नमूने की मापी गई ऐक्टिवता के आधार पर इसकी सन्निक आयु की गणना की जा सकती है। यही पुरातत्व विज्ञान में प्रयुक्त होने वाली $_{6}^{14} C$ कालनिर्धारण (dating) पद्धति का सिद्धांत है। यह मानकर कि मोहनजोदड़ो से प्राप्त किसी नमूने की ऐक्टिवता $9$ क्षय प्रति मिनट प्रति ग्राम कार्बन है। सिंधु घाटी सभ्यता की सन्नकट आयु का आकलन कीजिए।
$\frac{3}{4}$ सैकेण्ड में एक रेडियोधर्मी प्रतिदर्श के $\frac{3}{4}$ सक्रिय नाभिक विघटित हो जाते हैं, तो प्रतिदर्श की अर्द्धआयु है
किसी रेडियोधर्मी पदार्थ की अर्द्धआयु $48$ घण्टे है। इसका $\frac{1}{{16}}$ भाग क्षय होने में लगा समय ........ घण्टे है