अप्रत्यास्थ संघट्ट में क्या संरक्षित रहता है
गतिज ऊर्जा
संवेग
$(a)$ व $ (b)$ दोनों
न तो $ (a) $ न $ (b)$
द्रव्यमान $m =0.1 \,kg$ का एक पिण्ड $A$ का आरम्भिक वेग $3 \hat{\mathrm{i}}\; \mathrm{ms}^{-1}$ है। यह प्रत्यास्थ तरीके से समान द्रव्यमान के दूसरे पिण्ड $B$ से टकराता है जिसका आरम्भिक वेग $5 \hat{\mathrm{j}}\; \mathrm{ms}^{-1} .$ है। टकराने के बाद, पिण्ड $A \overrightarrow{ v }=4(\hat{ i }+\hat{ j })$ वेग से चल रहा है और पिण्ड $B$ की ऊर्जा $\frac{x}{10} J$ है। $x$ का मान है।
एक पिण्ड $\mathrm{H}$ ऊँचाई से मुक्त रूप से नीचे गिरना प्रारम्भ करता है तथा एक आनत तल से $\mathrm{h}$ ऊँचाई पर टकराता है। इस पूर्ण प्रत्यास्थ संघट्ट के परिणाम स्वरूप पिण्ड के वेग की दिशा क्षेतिज हो जाती है। $\frac{\mathrm{H}}{\mathrm{h}}$ का मान. . . . . . . .है जिसके लिए पिण्ड को पृथ्वी तल तक पहुँचने में लगा समय अधिकतम होगा।
चार चिकनी स्टील की समान द्रव्यमान की गेंदें विरामावस्था में हैं तथा घर्षण रहित एक सीधी रेखा के अनुदिश गति करने हेतु स्वतंत्र हैं। प्रथम गेंद को $0.4$ मी/सै वेग दिया जाता है, तो यह दूसरी गेंद के साथ प्रत्यक्ष प्रत्यास्थ संघट्ट करती है, ठीक इसी प्रकार दूसरी गेंद तीसरी गेंद से टकराती है, तथा तीसरी गेंद चौथी गेंद से टकराती है। अंतिम गेंद का वेग .......... मी/सैकण्ड होगा
$m$ द्रव्यमान का एक पिण्ड वेग $v$ से $2m$द्रव्यमान के स्थिर पिण्ड से प्रत्यक्ष संघट्ट करता है। संघट्ट के पश्चात् पिण्डों की गतिज ऊर्जाओं का अनुपात होगा
किसी सरल लोलक की डोरी जब ऊध्र्वाधर से ${45^o}$ का कोण बनाती है तब लोलक के गोलक $A$ को छोड़ दिया जाता है। यह समान पदार्थ व समान द्रव्यमान के अन्य गोलक $B$ जो कि टेबिल पर विराम में है, से टकराता है। यदि संघट्ट प्रत्यास्थ हो, तो