किसी पूर्णत: आवेशित संधारित्र की धारिता $‘C’$ है। इस संधारित्र का विसर्जन प्रतिरोधी तार की बनी किसी ऐसी छोटी कुण्डली से होकर किया जाता है, जो द्रव्यमान $‘m’$ तथा विशिष्ट ऊष्माधारिता $'s'$ के किसी ऊष्मारोधी गुटके में अंत: स्थापित है। यदि गुटके के ताप में वृद्धि ‘$\Delta T$’ है, तो संधारित्र के सिरों के बीच विभवान्तर है
$\frac{{ms\Delta T}}{C}$
$\sqrt {\frac{{2ms\Delta T}}{C}} $
$\sqrt {\frac{{2mC\Delta T}}{s}} $
$\frac{{mC\Delta T}}{s}$
किसी आवेशित संधारित्र की स्थितिज ऊर्जा निम्न में से किस सूत्र से प्राप्त होती है
($q$ = चालक पर आवेश, $C$ = इसकी धारिता)
एक समांतर पट्टीकीय संधारित्र की प्लेटों के बीच की दूरी $d$ और प्लेटों का अनुप्रस्थ परिच्छेदित क्षेत्रफल $A$ है। इसे आवेशित कर प्लेटों के बीच का अचर विधुतीय क्षेत्र $E$ बनाना है। इसे आवेशित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा होगी
$3\,\mu F$ तथा $5\,\mu F$ धारिता के दो पृथक्कृत धात्विक गोलों को क्रमश: $300\,V$ तथा $500\,V$ तक आवेशित किया जाता है। जब इन्हें एक तार द्वारा जोड़ दिया जाता है तो ऊर्जा हानि होगी
$C$ धारिता के संधारित्र में संचित ऊर्जा क्या होगी, जबकि उसका विभव $V$ तक बढ़ाया जाये
एक समान्तर प्लेट धारित्र के प्लेटों के बीच एकसमान विद्युत क्षेत्र $'\vec{E}'$ है। यदि प्लेटों के बीच की दूरी $'\mathrm{d}'$ तथा प्रत्येक प्लेट का क्षेत्रफल $'A'$ हो तो धारित्र में एकत्रित ऊर्जा है : $\left(\varepsilon_{0}=\right.$ निर्वात की विद्युतशीलता)